रविवार, 7 मई 2017

756 . ई जग जलधि अपारे। तठि देवि मोहि कडहारे।।


                                    ७५६ 
ई जग जलधि अपारे। तठि देवि मोहि कडहारे।।
धन जन यौवन सबे गुन आगर नरपति तेजि चल काय।ई सब संगति दिन दुयि बाटल आटल बिछुड़िअ जाय।।
जे किछु बुझि सार कए लेखल देखल सकल असारे। 
इन्द्रजाल जनि जगत सोहावन त्रिभुवन जत अधिकारे।।
तुअ परसादे साथ सभ पूरत दुर जायत दुख भाले। 
से मोय जानि शरण अवलम्बन सायद होयत संतारे।।
भूपतीन्द्र नृप निज मति एहो भन ई मोर सकल विचारे।देवि जननि पद पंकज भल्ल्हु  तेजि निखिल परिवारे।।
                                      ( मैथिली शैव साहित्य ) 

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