शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

747 . जत अपराध मोर क्षमह भवानि। होएतहु बेर बेर जानि अजानि।।


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जत अपराध मोर क्षमह भवानि। होएतहु बेर बेर जानि अजानि।।  
शंकट बड़ भेल दुर कर दुख। सुदिठिहि देखि कए करू मोहि सुख।।
निअ शिशु जनु भिषि मगाबह मायि। सब दुख मोर देवि कहि नहि जाइ।।
जगतप्रकाश कह तोहे आधार। करुणा कर मोर कर उपकार।।

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