बुधवार, 26 अप्रैल 2017

745 . अनेक अपराध होए हमरा , क्षमह जगत मात।


                                       ७४५
अनेक अपराध होए हमरा , क्षमह जगत मात। 
किछु सेवा कएल मोए , नित नित करह सुदिठि पात।।
करुणा ते सुनि हमर विनिति पुरह तोहे भवानी। 
चारि पदारथ मागल मोए तोहे से देह सेवक जानि।।
अउर कि विनति करब हम तोह ई सब तोहहि जान। 
पद युग धरि कह प्रकाश नृप सरण नहि मोर आन। 

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