मंगलवार, 25 अप्रैल 2017

744 . नहि धन नहि जन नहि आन देवा। मोन कएल जननी तोहर एक सेवा।।


                                      ७४४ 
नहि धन नहि जन नहि आन देवा। मोन कएल जननी तोहर एक सेवा।।
तोर करुणा ते मोर सब परिपुर। निय पद सनो हम जनु कर दूर।।
नित नित मागल मय ई तुव पासे। पुरह भवानी हमर मन आसे।।
जगतप्रकाश मल्ल भूपति भासे। जे हमरा अरि कर तसु नासे।।
                                                                   ( तत्रैव )

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