शनिवार, 8 अप्रैल 2017

728 . जननि , वीणा - वादिनी ! व्याप्त छी संसार में अहँ ,


                                      ७२८
जननि , वीणा - वादिनी ! व्याप्त छी संसार में अहँ ,
विपुल - लोकाहलादिनी ! जननि , विणा - वादिनी !
मोह तिमिरक नाश हो। विगत रजनी भेल , मिहिरक , 
आब शारद - हास हो। विजय मंगल - शंख फूकू ,
अयि अशेष - निनादिनी ! जननि , वीणा - वादिनी !
युवक देशक क्षुब्ध यौवन ! अग्नि - बीज बजाउ , जय - जय 
करथु निर्भय क्रान्ति - वाहन। दिअह नव साहस , अखण्डित 
शक्ति प्राणोन्मादिनी।  जननि , वीणा - वादिनी !
                                                 आरसी प्रसाद सिंह  

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