शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

648 . जौं मोर विनति धरब देवि कान।


                                      ६४८
                                   श्रीदेवी
जौं मोर विनति धरब देवि कान। 
तौं मोर एक विपत्ति नहि अनुभव सतत रहत कल्यान। शान्ति स्वाभाव दैव नहि देलनि पाप पटल परधान।।
उदरम्भरि भरि जनम कहाओल त्याग नै पतितक दान।।
वृद्ध वयस किछु साधन सिद्धि न वञ्चक मे बलवान। 
एहन पातितकें के धुरि ताकत अम्बा तुअ---------------- 
कह कविचन्द्र मन्द कलिकाल मे पापी हम ----
प्रायः केओ देखि नहि पड़इछ हमर प्रबल।---------- 
( तत्रैव ) 

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