शनिवार, 26 नवंबर 2016

627 . श्रीमातंगी - कीरक सम रूचि स्याम सुतनु लस माणिक भूषित देहा।


                                    ६२७
                               श्रीमातंगी
कीरक सम रूचि स्याम सुतनु लस माणिक भूषित देहा। 
शिशु शशि भाल मुक्तामणि हासमुखी शुभ गेहा।।
निज पद विनत विभव वरदायिनि तीनि नयन तुअ भासे।
सुर मुनि आदि सकल जन सेवित चरण विजित परवासे।।
कटुक सुवास पान आरतमुख कर वर राजय बीना। 
रत्न सिंहासन ऊपर राजित षोडस बैस नवीना।।
दहिना हाथ दुऊ असि अंकुश लस पास सुखेटक वामे। 
अष्ट सिद्धि मयि सिद्धि सरूपा मातंगी जसु नामे।।
मिथिलापतिक पुरिय अभिलाषा निज पद नत अवलम्बे। 
रत्नपाणि तुअ पद युग सेवक गोचर करू जगदम्बे।।
                                    ( तत्रैव )   

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