गुरुवार, 7 जुलाई 2016

567 . हे माय अहाँ बिनु आश ककर


हे माय अहाँ बिनु आश ककर 
जगदम्ब अहीं अवलम्ब हमर , हे माय अहाँ बिनु आश ककर ?
जं माय अहाँ दुःख नहि सुनबइ , तँ जाय कहू ककरा कहबइ ?
करू माफ़ जननि अपराध हमर , हे माय अहाँ बिनु आश ककर ?
हम भरि जग सँ ठुकरायल छी , माँ अहिंक शरण में आयल छी ,
देखू हम पडलहु बीच भँवर , हे माय अहाँ बिनु आश ककर ?
अहाँ काली - लक्ष्मी कल्याणी छी , तारा - अम्बे - ब्रह्माणी छी ,
अछि पुत्र " प्रदीप " बनल टूगर , हे माय अहाँ बिनु आश ककर ?
------------चंद्रमणि 

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