शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

520 . ईश्वर

                         ( मैं और धर्म पत्नी जी  )
५२० 
ईश्वर 
सर्व शक्तिमान अर्थात जो अपने शक्ति या आत्म शक्ति से पुरे ब्रह्माण्ड को चलाता हो ! यह तो सभी मान लेंगें चाहे वे आस्तिक हों वा नास्तिक कि इस तरह क्रमबद्ध से घटने वाली सारी क्रियाएँ को घटित करने वाला जरूर है जिसे हम मात्र अनुभव कर सकते हैं ! बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो ये समझते हैं कि जो हो रहा है वह मैं कर रहा हूँ , मैं जो अच्छा करता हूँ उसका नतीजा अच्छा निकलेगा और जो ख़राब करता हूँ उसका फल स्वभाविक तौर पर ख़राब होगा ! मैं जो चाहता हूँ वह करता हूँ होता है ! अगर किसी से यह सवाल पूछा जाये कि तुम जो मैं हो सो क्या है ? क्या तुम्हारा पूरा शरीर मैं है ! नहीं तो क्या तुम्हारा कोई अंग मैं है नहीं तो तुम्हारी भावना मैं है नहीं तो क्या तुम्हारा अनुभव मैं है नहीं तो आखिर तुम में मैं कहाँ ?
जानते हैं मैं कितनी बड़ी चीज है ? वह जो चाहती उसे करते आपके शरीर से मैं निकल जाये तो आप - आप नहीं रहिएगा आपके पीछे श्री नहीं रहेगा !
मैं इतनी बड़ी चीज होते हुए भी आप नहीं कह सके आप में मैं कौन है कहाँ पर स्थित है क्यों स्थित है किसलिए स्थित रहती है उसका क्या अस्तित्व है ! अगर आप मैं को समझ लें उसका साक्षात्कार कर लें तो आप - आप से मुक्त हो जाईयेगा आप प्रकृति को समझने लगिएगा आप ईश्वर को समझने लगिएगा पुरे ईश्वर को नहीं ईश्वरत्व को पुरे ईश्वर को समझने के लिए सभी मैं को समझना होगा ! और पुरे ईश्वर को समझने के बाद ब्रह्मत्व अर्थात श्रृष्टि करता को समझियेगा और पुरे ब्रह्माण्ड को समझने के बाद ही आप पुरे ब्रह्म को समझ सकिएगा ! पर मनुष्य तो मात्र प्रकृति के एक कर्म एक कारण तक को नहीं समझ कर अपने में उलझ कर उलझता चला जाता जिसका कोई अस्तित्व नहीं ! 
                                        एक रमेश नामके आफिसर हमारे कार्यालय में हैं , उनसे मेरा एक तरह का दोस्ताना परिचय है ! यह भी एक कारणवश हुआ ! कारण यह था कि वे ईश्वर को नहीं मानते बल्कि हम जो हैं सो हैं और हमारे करने से जो होता है सो होता है ! इन्ही बातों पर मैं उनके सामने आया जब वे उपरोक्त बातें एक व्यक्ति के सामने कर रहे थे ! और मेरे यह कहने पर कि एक - एक पल जो आप करते हैं ! छोटा से छोटा भी कर्म वह आप किसी अज्ञात शक्ति के कारण और उसके पीछे उसी अज्ञात शक्ति का हाथ रहता है और उसी अज्ञात शक्ति को हम ईश्वर कहते हैं ! पर इसका उन्होंने कड़ा विरोध किया और बहुत तर्क वितर्क के बाद उन्होंने कहा कि ठीक है जिस दिन आप यह साबित कर दें उस दिन मैं आपके ईश्वर को मान लूंगा ! मैंने कहा आपको मैं आप ही के जीवन में घटित घटना से ईश्वर का आभास कराऊंगा और उस दिन आप आप स्वयं मेरे यहाँ दौरे आएंगे और कहेंगे आज आपके ईश्वर ने ही मेरी लाज बचायी ! इसी घटना के बाद से हम दोस्त के तरह विचारों की भिन्नता के बाबजूद मिलते रहे और समय गुजरता गया और वे अपने बात पर अड़े रहे और मैं भी समय का इंतजार करता रहा ! 
एक बार की बात है वे पारिवारिक झंझटों में उलझ गए क्योंकि उनके पिताजी की मृत्यु दो महीने पूर्व हो चुकी थी और उनके श्राद्ध कर्म के लिए रमेश ने कार्यालय से रुपये लेकर उस कर्म का संपादन किया था , क्योंकि वे यह मानते थे कि यह सब ढकोसला है परन्तु वे जानते थे कि समाज वाले यह तो समझेंगे नहीं और कहने लगेंगे बाप के एक ही बेटे होकर जिस बाप ने इतना पढ़ा लिखा कर अफसर बनाया आज उनका श्राद्ध कर्म करने में भी पैसे की फिजूलखर्ची समझ रहा है ! इस तरह के सामाजिक अप्रतिष्ठा न होने के लिए उन्होंने खूब धूम धाम से सारे कर्म निपटाये , जिसके फलस्वरूप वे कार्यालय के कर्जदार हो गए और उनका वेतन कटने लगा ! और अब वे अपने अपनी लड़की की शादी भी खूब धूम धाम से करने जा रहे थे ! बेटी अभी B.SC में पढ़ रही थी और लड़का मेडिकल का छात्र था ! जोड़ी अच्छी थी चूँकि दोनों अच्छे थे ! इस शादी को भी अच्छी तरह संपन्न करने के लिए चूँकि एक ही बेटी थी , इन्होने कोई कोर कसर नहीं रखनी चाही थी ! अतएव इन्हे इस बार भी कार्यालय से जितने रुपये मिलने थे सो इन्होने उठा लिया पर संयोगवश इन्हे किसी आवश्यक कार्य के लिए ५०० - ०० रुपये की अत्यधिक आवश्यकता पड़ गयी ! इसके लिए इन्होने पहले चाहा कि कार्यालय से ही किसी तरह इतना रूपया प्राप्त हो जाये परन्तु न हुआ चूँकि न होना था ! ये किसी के सामने हाथ फैलाना नहीं चाहते थे ! परन्तु मज़बूरी क्या नहीं करवा देती है ! परन्तु हाय रे भाग्य जिसने कभी किसी के सामने हाथ नहीं पसारा था उसे आज सबके सामने हाथ पसारना पड़ रहा था ! पर यह क्या कि उन्हें कहीं भी किसीसे भी रूपया प्राप्त नहीं हुआ  सभी ने अपनी - अपनी मज़बूरी दिखला दी जो सच भी था ! अब तो इन्हे चारों तरफ निराशा ही निराशा दिखाई पड़ने लगी ! कहीं भी हाथ पांव मारने  से इन्हे सफलता नहीं मिली थी ! बहुत ही दैनिय स्थिति उनकी हो रही थी ! उन्हें लग रहा था चारों तरफ अथाह पानी - पानी ही पानी है और वे बीच में एक हफ्ते से फंसे हुए हैं परन्तु उन्हें किनारा नहीं मिल रहा है ! बात भी सच्ची है वे एक सप्ताह से ठीक से न तो भोजन ही कर पाये हैं और न ही ठीक से सो सके हैं ! सोये - सोये में ही चिहुंक के उठ बैठते हैं ! परन्तु वही निराशा क्या सपने में भी कभी किसी की आशा की पूर्ति हुई है ! गाल पिचक के स्टील के कटोरे की सेट की अंतिम कटोरी के बराबर हो गयी है ! ठीक से आवाज तक उनके मुंह से नहीं निकल रही है ! आज उनके सब्र का बांध टूट रहा है ! वे अपने कमरे में चहलकदमी कर रहे हैं ! पलंग पर के गद्देदार बिछावन भी उन्हें अपने पर बैठने के लिए आकर्षित करने की क्षमता खो चुके हैं ! चमकदार दीवार उस कमरे की सारी वस्तुएं कोई भी उन्हें चैन देने में असफल सिद्ध हो रही है ! आँख के चारों ओर काली छाया सी बन चुकी  है  ! बाल लगते हैं जैसे कभी साबुन न देखे हों ! बदन पर के कपडे शरीर पर से कितनो दिनों से न उतरें हैं ! आज उनके मुंह से अचानक भगवान - भगवान शब्द उच्चारित हुए हैं और इस उच्चारण के समय वे अनुभव करते हैं कि उनकी तकलीफ की कुछ मात्रा कम हो जाती है ! और वे कह रहे हैं ! हा ! भगवान हा ! भगवान मुझे ५०० रुपये का इंतजाम कहीं से कर दो आज वे जो की भगवान नाम तक को नहीं जानते थे आज इस तरह कह रहे हैं जैसे भगवान कोई सेठ है जो की इनके विलाप करने के कारण  अपनी तिजोरी खोलकर इनके सामने रख देगा ! परन्तु आज वे भगवान - भगवान कर रहे हैं ! अपनी इज्जत उनके हाथों में दे रहे हैं ! आज वे भगवान को चैलेन्ज दे रहे हैं कि अगर कोई भगवान है तो उनकी तकलीफ को दूर कर दे ! इस तरह से वे पुरे कमरे में चहलकदमी करते हुए विलाप कर रहे हैं ! ठीक एन वक्त पर उनके दरवाजे पर थपथपाहट की मद्धिम सी आवाज उभरी पर वे इस पर ध्यान नहीं दिए क्योंकि उनका मन तो अभी कहीं और था ! उन्होंने सोंचा शायद हवा का झोंका हो ! पर यह क्या दरवाजे पर अब ठहर - ठहर कर लगातार थपथपाहट होने लगी वे किंकर्तव्यविमूढ़ हो खींचते से दरवाजे की तरफ चल दिए और इसी स्वप्नावस्था में दरवाजे को खोल दिया ! दरवाजे को खोलते ही वे प्रश्नवाचक चिन्ह में अपनी आँखें सिकोड़ ली , यह जरुरी भी था क्योंकि इन्होने उस व्यक्ति का कभी दर्शन नहीं किया था ! इनकी तन्द्रा उस समय टूटी जब उस आगुन्तक ने क्षमा मांगते हुए उनसे कुछ सुनने का आग्रह किया ! वे उस आगुन्तक को लेकर कमरे के अंदर आये और उसे बैठाते हुए अपने भी बैठ गए ! अब वे कुछ - कुछ सामान्य स्थिति में आ रहे थे ! उन्होंने उससे पूछा कहिये किनसे काम है ! वह व्यक्ति रमेश की ऐसी हालत देखकर उनके उतने गंभीर समस्या तक को नहीं समझ सका ! उसने कहा आपही स्वर्गवासी हरिमोहन के पुत्र हैं ? हाँ ! बिलकुल ही संक्षिप्त उत्तर ! अब यह व्यक्ति अपने आने का कारण उन्हें सुनाने लगा ! मैं आपके पिताजी से अच्छा जान पहचान रखता था ! एक बार मुझे ५०० रुपये की शख्त आवश्यकता हुई ! मुझे विश्वास था की वे दे देंगे ! अतएव मैंने उन्ही के सामने मुंह खोला और उन्होंने मुझे निराश भी नहीं होने दिया ! उसके बाद मेरा वह काम संपन्न हुआ जिसलिए की मैंने रुपये लिए थे ! परन्तु मेरी आर्थिक स्थिति बहुत ही बिगर गयी और मैं रुपये वापस करने की स्थिति न रहा और शर्म के मारे मैं उनसे मिलना बंद कर दिया ! यहाँ तक की मैं उनके बीमारी के बारे में भी सुना , उनकी मृत्यु तक का समाचार मुझे मिला परन्तु मैं इस काबिल नहीं हो पाया था की उनके रुपये उनके  किसी काम में लगे जो मैं दे सकूँ परन्तु अब जब मेरे पास इतने रुपये नहीं थे की मैं पूरा दे सकूँ , परन्तु जब मुझे मालूम हुआ कि आप अपनी बेटी की शादी करने जा रहे हैं तो सोंचा चलो अगर उनके रुपये उनके पोती के शादी में भी लग गया तो ठीक रहेगा ! और यह सोंचकर मैं यहाँ चला आया परन्तु मेरी एक विनती है कि मैं आपको उस रुपये की सूद अदा नहीं कर सकूंगा और मूल ही ५०० रुपये सिर्फ आपको स्वीकार करना पड़ेगा ! रमेश को तो अपने कानों पे जैसे विश्वास ही नहीं हुआ , लगा जैसे वह सपना देख रहा है उसे इस तरह एकटक घूरते देख उस व्यक्ति ने कहा क्या आपको मेरी बात मंजूर नहीं ! अब रमेश जैसे सोते से जागा हो कहा नहीं - नहीं  ऐसी बात नहीं आपकी बड़ी मेहरबानी हुई जो यह सोंच कर यहाँ आने का कष्ट किया ! और वह व्यक्ति उनके हाथ में ५०० रुपये रख उनसे आज्ञा ले चलता बना ! अब जैसे रमेश को होश हुआ और वह अपनी पूर्व स्थिति को प्राप्त हुआ वह रुपये को देख रहा था और उससे कुछ देर पहले घटी घटना पर विश्वास ही नहीं हो रहा था ! उसके मुंह से अक्समात निकल पड़ा भगवन तुम्हारी महिमा अपरम्पार ! मेरी नास्तिकता के अपराध को क्षमा करना और अब तुम जानो ! मेरी सारी गलती को माफ़ करना और इस घटना के बाद वह मेरे पास आये और उसने कहा आज तुम्हारे भगवान से मेरी भेंट हो गयी ! और धूम धाम से उसने अपनी बेटी की शादी संपन्न की ! इस घटना के बाद ही वह भगवान के परम भक्त बन गए !

सुधीर कुमार ' सवेरा '      
                         ( मैं और धर्म पत्नी जी  )
५२० 
ईश्वर 
सर्व शक्तिमान अर्थात जो अपने शक्ति या आत्म शक्ति से पुरे ब्रह्माण्ड को चलाता हो ! यह तो सभी मान लेंगें चाहे वे आस्तिक हों वा नास्तिक कि इस तरह क्रमबद्ध से घटने वाली सारी क्रियाएँ को घटित करने वाला जरूर है जिसे हम मात्र अनुभव कर सकते हैं ! बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो ये समझते हैं कि जो हो रहा है वह मैं कर रहा हूँ , मैं जो अच्छा करता हूँ उसका नतीजा अच्छा निकलेगा और जो ख़राब करता हूँ उसका फल स्वभाविक तौर पर ख़राब होगा ! मैं जो चाहता हूँ वह करता हूँ होता है ! अगर किसी से यह सवाल पूछा जाये कि तुम जो मैं हो सो क्या है ? क्या तुम्हारा पूरा शरीर मैं है ! नहीं तो क्या तुम्हारा कोई अंग मैं है नहीं तो तुम्हारी भावना मैं है नहीं तो क्या तुम्हारा अनुभव मैं है नहीं तो आखिर तुम में मैं कहाँ ?
जानते हैं मैं कितनी बड़ी चीज है ? वह जो चाहती उसे करते आपके शरीर से मैं निकल जाये तो आप - आप नहीं रहिएगा आपके पीछे श्री नहीं रहेगा !
मैं इतनी बड़ी चीज होते हुए भी आप नहीं कह सके आप में मैं कौन है कहाँ पर स्थित है क्यों स्थित है किसलिए स्थित रहती है उसका क्या अस्तित्व है ! अगर आप मैं को समझ लें उसका साक्षात्कार कर लें तो आप - आप से मुक्त हो जाईयेगा आप प्रकृति को समझने लगिएगा आप ईश्वर को समझने लगिएगा पुरे ईश्वर को नहीं ईश्वरत्व को पुरे ईश्वर को समझने के लिए सभी मैं को समझना होगा ! और पुरे ईश्वर को समझने के बाद ब्रह्मत्व अर्थात श्रृष्टि करता को समझियेगा और पुरे ब्रह्माण्ड को समझने के बाद ही आप पुरे ब्रह्म को समझ सकिएगा ! पर मनुष्य तो मात्र प्रकृति के एक कर्म एक कारण तक को नहीं समझ कर अपने में उलझ कर उलझता चला जाता जिसका कोई अस्तित्व नहीं ! 
                                        एक रमेश नामके आफिसर हमारे कार्यालय में हैं , उनसे मेरा एक तरह का दोस्ताना परिचय है ! यह भी एक कारणवश हुआ ! कारण यह था कि वे ईश्वर को नहीं मानते बल्कि हम जो हैं सो हैं और हमारे करने से जो होता है सो होता है ! इन्ही बातों पर मैं उनके सामने आया जब वे उपरोक्त बातें एक व्यक्ति के सामने कर रहे थे ! और मेरे यह कहने पर कि एक - एक पल जो आप करते हैं ! छोटा से छोटा भी कर्म वह आप किसी अज्ञात शक्ति के कारण और उसके पीछे उसी अज्ञात शक्ति का हाथ रहता है और उसी अज्ञात शक्ति को हम ईश्वर कहते हैं ! पर इसका उन्होंने कड़ा विरोध किया और बहुत तर्क वितर्क के बाद उन्होंने कहा कि ठीक है जिस दिन आप यह साबित कर दें उस दिन मैं आपके ईश्वर को मान लूंगा ! मैंने कहा आपको मैं आप ही के जीवन में घटित घटना से ईश्वर का आभास कराऊंगा और उस दिन आप आप स्वयं मेरे यहाँ दौरे आएंगे और कहेंगे आज आपके ईश्वर ने ही मेरी लाज बचायी ! इसी घटना के बाद से हम दोस्त के तरह विचारों की भिन्नता के बाबजूद मिलते रहे और समय गुजरता गया और वे अपने बात पर अड़े रहे और मैं भी समय का इंतजार करता रहा ! 
एक बार की बात है वे पारिवारिक झंझटों में उलझ गए क्योंकि उनके पिताजी की मृत्यु दो महीने पूर्व हो चुकी थी और उनके श्राद्ध कर्म के लिए रमेश ने कार्यालय से रुपये लेकर उस कर्म का संपादन किया था , क्योंकि वे यह मानते थे कि यह सब ढकोसला है परन्तु वे जानते थे कि समाज वाले यह तो समझेंगे नहीं और कहने लगेंगे बाप के एक ही बेटे होकर जिस बाप ने इतना पढ़ा लिखा कर अफसर बनाया आज उनका श्राद्ध कर्म करने में भी पैसे की फिजूलखर्ची समझ रहा है ! इस तरह के सामाजिक अप्रतिष्ठा न होने के लिए उन्होंने खूब धूम धाम से सारे कर्म निपटाये , जिसके फलस्वरूप वे कार्यालय के कर्जदार हो गए और उनका वेतन कटने लगा ! और अब वे अपने अपनी लड़की की शादी भी खूब धूम धाम से करने जा रहे थे ! बेटी अभी B.SC में पढ़ रही थी और लड़का मेडिकल का छात्र था ! जोड़ी अच्छी थी चूँकि दोनों अच्छे थे ! इस शादी को भी अच्छी तरह संपन्न करने के लिए चूँकि एक ही बेटी थी , इन्होने कोई कोर कसर नहीं रखनी चाही थी ! अतएव इन्हे इस बार भी कार्यालय से जितने रुपये मिलने थे सो इन्होने उठा लिया पर संयोगवश इन्हे किसी आवश्यक कार्य के लिए ५०० - ०० रुपये की अत्यधिक आवश्यकता पड़ गयी ! इसके लिए इन्होने पहले चाहा कि कार्यालय से ही किसी तरह इतना रूपया प्राप्त हो जाये परन्तु न हुआ चूँकि न होना था ! ये किसी के सामने हाथ फैलाना नहीं चाहते थे ! परन्तु मज़बूरी क्या नहीं करवा देती है ! परन्तु हाय रे भाग्य जिसने कभी किसी के सामने हाथ नहीं पसारा था उसे आज सबके सामने हाथ पसारना पड़ रहा था ! पर यह क्या कि उन्हें कहीं भी किसीसे भी रूपया प्राप्त नहीं हुआ  सभी ने अपनी - अपनी मज़बूरी दिखला दी जो सच भी था ! अब तो इन्हे चारों तरफ निराशा ही निराशा दिखाई पड़ने लगी ! कहीं भी हाथ पांव मारने  से इन्हे सफलता नहीं मिली थी ! बहुत ही दैनिय स्थिति उनकी हो रही थी ! उन्हें लग रहा था चारों तरफ अथाह पानी - पानी ही पानी है और वे बीच में एक हफ्ते से फंसे हुए हैं परन्तु उन्हें किनारा नहीं मिल रहा है ! बात भी सच्ची है वे एक सप्ताह से ठीक से न तो भोजन ही कर पाये हैं और न ही ठीक से सो सके हैं ! सोये - सोये में ही चिहुंक के उठ बैठते हैं ! परन्तु वही निराशा क्या सपने में भी कभी किसी की आशा की पूर्ति हुई है ! गाल पिचक के स्टील के कटोरे की सेट की अंतिम कटोरी के बराबर हो गयी है ! ठीक से आवाज तक उनके मुंह से नहीं निकल रही है ! आज उनके सब्र का बांध टूट रहा है ! वे अपने कमरे में चहलकदमी कर रहे हैं ! पलंग पर के गद्देदार बिछावन भी उन्हें अपने पर बैठने के लिए आकर्षित करने की क्षमता खो चुके हैं ! चमकदार दीवार उस कमरे की सारी वस्तुएं कोई भी उन्हें चैन देने में असफल सिद्ध हो रही है ! आँख के चारों ओर काली छाया सी बन चुकी  है  ! बाल लगते हैं जैसे कभी साबुन न देखे हों ! बदन पर के कपडे शरीर पर से कितनो दिनों से न उतरें हैं ! आज उनके मुंह से अचानक भगवान - भगवान शब्द उच्चारित हुए हैं और इस उच्चारण के समय वे अनुभव करते हैं कि उनकी तकलीफ की कुछ मात्रा कम हो जाती है ! और वे कह रहे हैं ! हा ! भगवान हा ! भगवान मुझे ५०० रुपये का इंतजाम कहीं से कर दो आज वे जो की भगवान नाम तक को नहीं जानते थे आज इस तरह कह रहे हैं जैसे भगवान कोई सेठ है जो की इनके विलाप करने के कारण  अपनी तिजोरी खोलकर इनके सामने रख देगा ! परन्तु आज वे भगवान - भगवान कर रहे हैं ! अपनी इज्जत उनके हाथों में दे रहे हैं ! आज वे भगवान को चैलेन्ज दे रहे हैं कि अगर कोई भगवान है तो उनकी तकलीफ को दूर कर दे ! इस तरह से वे पुरे कमरे में चहलकदमी करते हुए विलाप कर रहे हैं ! ठीक एन वक्त पर उनके दरवाजे पर थपथपाहट की मद्धिम सी आवाज उभरी पर वे इस पर ध्यान नहीं दिए क्योंकि उनका मन तो अभी कहीं और था ! उन्होंने सोंचा शायद हवा का झोंका हो ! पर यह क्या दरवाजे पर अब ठहर - ठहर कर लगातार थपथपाहट होने लगी वे किंकर्तव्यविमूढ़ हो खींचते से दरवाजे की तरफ चल दिए और इसी स्वप्नावस्था में दरवाजे को खोल दिया ! दरवाजे को खोलते ही वे प्रश्नवाचक चिन्ह में अपनी आँखें सिकोड़ ली , यह जरुरी भी था क्योंकि इन्होने उस व्यक्ति का कभी दर्शन नहीं किया था ! इनकी तन्द्रा उस समय टूटी जब उस आगुन्तक ने क्षमा मांगते हुए उनसे कुछ सुनने का आग्रह किया ! वे उस आगुन्तक को लेकर कमरे के अंदर आये और उसे बैठाते हुए अपने भी बैठ गए ! अब वे कुछ - कुछ सामान्य स्थिति में आ रहे थे ! उन्होंने उससे पूछा कहिये किनसे काम है ! वह व्यक्ति रमेश की ऐसी हालत देखकर उनके उतने गंभीर समस्या तक को नहीं समझ सका ! उसने कहा आपही स्वर्गवासी हरिमोहन के पुत्र हैं ? हाँ ! बिलकुल ही संक्षिप्त उत्तर ! अब यह व्यक्ति अपने आने का कारण उन्हें सुनाने लगा ! मैं आपके पिताजी से अच्छा जान पहचान रखता था ! एक बार मुझे ५०० रुपये की शख्त आवश्यकता हुई ! मुझे विश्वास था की वे दे देंगे ! अतएव मैंने उन्ही के सामने मुंह खोला और उन्होंने मुझे निराश भी नहीं होने दिया ! उसके बाद मेरा वह काम संपन्न हुआ जिसलिए की मैंने रुपये लिए थे ! परन्तु मेरी आर्थिक स्थिति बहुत ही बिगर गयी और मैं रुपये वापस करने की स्थिति न रहा और शर्म के मारे मैं उनसे मिलना बंद कर दिया ! यहाँ तक की मैं उनके बीमारी के बारे में भी सुना , उनकी मृत्यु तक का समाचार मुझे मिला परन्तु मैं इस काबिल नहीं हो पाया था की उनके रुपये उनके  किसी काम में लगे जो मैं दे सकूँ परन्तु अब जब मेरे पास इतने रुपये नहीं थे की मैं पूरा दे सकूँ , परन्तु जब मुझे मालूम हुआ कि आप अपनी बेटी की शादी करने जा रहे हैं तो सोंचा चलो अगर उनके रुपये उनके पोती के शादी में भी लग गया तो ठीक रहेगा ! और यह सोंचकर मैं यहाँ चला आया परन्तु मेरी एक विनती है कि मैं आपको उस रुपये की सूद अदा नहीं कर सकूंगा और मूल ही ५०० रुपये सिर्फ आपको स्वीकार करना पड़ेगा ! रमेश को तो अपने कानों पे जैसे विश्वास ही नहीं हुआ , लगा जैसे वह सपना देख रहा है उसे इस तरह एकटक घूरते देख उस व्यक्ति ने कहा क्या आपको मेरी बात मंजूर नहीं ! अब रमेश जैसे सोते से जागा हो कहा नहीं - नहीं  ऐसी बात नहीं आपकी बड़ी मेहरबानी हुई जो यह सोंच कर यहाँ आने का कष्ट किया ! और वह व्यक्ति उनके हाथ में ५०० रुपये रख उनसे आज्ञा ले चलता बना ! अब जैसे रमेश को होश हुआ और वह अपनी पूर्व स्थिति को प्राप्त हुआ वह रुपये को देख रहा था और उससे कुछ देर पहले घटी घटना पर विश्वास ही नहीं हो रहा था ! उसके मुंह से अक्समात निकल पड़ा भगवन तुम्हारी महिमा अपरम्पार ! मेरी नास्तिकता के अपराध को क्षमा करना और अब तुम जानो ! मेरी सारी गलती को माफ़ करना और इस घटना के बाद वह मेरे पास आये और उसने कहा आज तुम्हारे भगवान से मेरी भेंट हो गयी ! और धूम धाम से उसने अपनी बेटी की शादी संपन्न की ! इस घटना के बाद ही वह भगवान के परम भक्त बन गए !

सुधीर कुमार ' सवेरा '                  

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