रविवार, 5 अप्रैल 2015

433 . दिल के चमन में

४३३ 
दिल के चमन में 
जब पाँव तेरे पड़े थे 
जर्रा - जर्रा था महक उठा 
कली - कली थी खिल उठी 
ना जाने कैसे 
वफ़ा के मौसम में 
बेवफाई के तूफान चले 
दिल का चमन उजड़ा 
दिल की जमीं 
यादों की कब्रिस्तान बनी 
यादों के भूत 
ज्यादा शोर मचाते रातों में 
आहें उठाते टीस जगाते 
सोना होता नाकाम रातों  में !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 
१० - ११ - १९८६ 

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