मंगलवार, 24 मार्च 2015

424 .बाढ़ एक दृश्य अनेक

४२४ 
बाढ़ एक दृश्य अनेक 
मेरे शहर में भी 
संकट बाढ़ का है आया 
सारे पिछले रेकार्ड को 
तोड़ आगे को है बढ़ गया 
मजबूत बाँध के सटे 
एक किराये का मकान है मेरा 
प्रसाशन व्यस्त है कामो में 
भोज के समय कोमहर रोपने में 
समाधानहीन 
आश्वासनों से परिपूर्ण 
पेट्रोलिंग गाड़ी कलेक्टर की 
दूर से ही 
प्रकाश उसकी 
टीम टिमाती नजर है आती 
जन समुदाय 
बांधों पे आ 
मेले का है 
रूप दे रहा 
संकट में भी 
भीड़ देख 
खोमचे वाला 
ठेले वाला 
भीड़ है बढ़ा रहा 
भीड़ है बहुत 
पर है कौन 
जो सहायता के लिए 
ऐसा भी पुकार सके 
फलां भैया फलां चाचा 
इस संकट में 
मेरी मदद करो 
सुनकर भी 
कौन भला 
आ पायेगा 
आगे बढ़ने पर 
ताड़ी की घूंट 
दे रहे हैं लोग 
मस्त हो 
मशगूल हैं 
खुद में ये लोग 
सामने देखता हूँ 
देखने से ज्यादा 
बस सुन पाता हूँ 
पांच रुपये पर 
जिस्म की बात हो रही है 
बांध टूटने का खतरा 
कुछ बढ़ ही गया है 
यह नहीं है 
या है मानसिकता 
किसका किनारा 
कितना मजबूत है 
इस पार के लोग 
लाठी फरसा और भाला 
लिए हाथ में घूम रहे हैं 
उस पार भी है जमकर तैयारी 
जीपों कारों में 
लोग निरिक्षण हैं करते 
गोला बारूद की भी 
व्यवस्था उधर है भरपूर 
बांध उधर है जो कमजोर 
बीच की धारा 
बाँट रही है 
दोनों छोड़ों की मानसिकता 
झूठा हल्ला पे भी 
लोग - लोग को मारने पर 
हैं पुरे तैयार 
पता नहीं 
ये बूढी गण्डकी धार 
किसको किससे 
है बाँट रही 
और ना जाने 
किसको किससे है 
यह जोड़ रही 
जन संपर्क भी 
जब और न 
रह सका चुप 
जीप ले माइक पर 
उच्च स्वर से 
वो बोल पड़ा 
नागरिक बन्धुवों 
एक है आवश्यक सूचना 
कृपया इस पर ध्यान दो 
नदी ने 
चौरासी की सीमा को 
कर लिया है पार 
मुजफ्फरपुर में 
पानी है स्थिर 
यहाँ पानी बढ़ रहा है 
कृपया आप लोग 
शहर छोड़ने को हो जाओ तैयार 
माँ गण्डकी ने 
अपनी भूख मिटा ली 
बेगमपुर को बहा कर 
अपना जी बहला ली 
रात अँधेरी थी 
समय एक बजा था 
जब मुंह अपना खोली थी 
मेरे कानो में 
चीखें तरह - तरह की 
तड़पती और मौत की 
पशु मवेशी इंसानों की 
आकाश में 
एक हेलीकॉप्टर 
कातर गिद्ध की दृष्टि 
एक बेबस असहाय
अमर्यादित लहरें 
भला सीमाएं न  तोड़ें ?
किंकर्तव्यविमूढ़ मेरी बेबसी 
बस ईश्वर से एक प्रार्थना !



सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०१ - ०९ - १९८६ / ०२ - ०९ - १९८६ 
११ - ३५ pm 

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