शुक्रवार, 13 मार्च 2015

415 . मेरी कविताओं में

४१५ 
मेरी कविताओं में 
मेरा अपनापन है 
जो मैं हूँ 
वो मेरी कवितायेँ हैं 
कविता वो हैं 
जो मैं हूँ 
मैं ही हूँ 
वो मेरी कविता 
दुर्गम - दुर्गान्त 
अगम - सुखांत 
क्षत - विक्षत 
आहत ह्रदय तक 
आलाप - प्रलाप 
अविकसित - अर्धखिली 
सुवासित - पुष्पित 
मैं जो किसी से न बोला 
वह भी तुझ पे खोला 
वो मेरे अन्तरंग 
मेरे दुखों को 
जितना तूँ जानेगा 
दूसरा भला इसको 
कैसे समझ पायेगा 
तूँ बन मेरी राजदार 
चलती रही साथ - साथ 
कुछ भी तो तुझ से 
न छुपा पाया मैंने 
तूँ मेरी जिंदगी का आईना है 
जब जैसा अक्श बना 
तूने मुझे दिखलाया !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 

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