बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

387 . तेरे उभर रहे चेहरे मानस पटल पर

३८७ 
तेरे उभर रहे चेहरे मानस पटल पर 
अब तक अंकित है 
जो न अब स्पष्ट ही होती है 
न लुप्त ही होती है 
पर जीने के लिए बस 
वही तेरी यादों का सहारा 
तेरे उभर रहे चेहरे 
जो न लुप्त ही होती
न स्पष्ट ही होती है 
साफ होते  - होते ही तेरी तस्वीर 
छिप जाती है धुंध में फिर 
पर मन में से विलुप्त नहीं हो पाते 
तेरे उभर रहे चेहरे !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' २४ - ११ - १९८३ 

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