शनिवार, 24 जनवरी 2015

375 .एक साथ झेले

३७५ 
एक साथ झेले 
दो - दो तूफान 
जब थे न हम लायक 
दरिया में भी 
पाँव रखने को 
खुद ही कहा  
निकल जाओ 
और भूल भी गए 
कि निकाला था किसको 
हम न थे अच्छे 
तो आपने ही 
क्या कसर छोड़ा 
माना कि 
किसी के किये 
कुछ नहीं होता 
पर वक्त ने तो 
आपसे ही करवाया 
रहा न विश्वास 
अपनों पे 
तो गैरों से 
शिकवा कैसा 
औरों ने तो कम से कम 
इतना बुरा न किया 
बड़ी बदनसीबी रही है जिंदगी में 
जब था नन्हा 
खो दिया दादा दादी 
खोया नाना नानी 
फिर वक्त आया 
फाकामस्ती का 
गुजरे दिन बचपन के 
यूँ ही रोते गाते 
माँ बाबूजी के 
प्यार के सहारे 
वक्त जब पढ़ने को आया 
पैसे का साथ न था 
की पढ़ाई किसी तरह पूरी 
माँ को जब बेहद पड़ा सहना 
उसका साथ मस्तिष्क ने छोड़ा 
पड़े कदम जब उल्फत में मेरे 
बाबूजी थे उलझन में 
उजड़ी जब वो दुनियाँ 
किसी तरह 
उषा ने 
जीवन दान दिया 
आयी घर में लक्ष्मी 
बन कर मेरी बेटी सिद्धि 
दिन फिरे 
छूटी नौकरी पायी 
हर बात में 
गम लाखों मैंने खायी 
ईश्वर किसी को न ले 
परीक्षा इतनी कड़ी !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०८ - ०५ - १९९० 

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