रविवार, 14 दिसंबर 2014

357 .पल वो

३५७ 
पल वो 
हमने तुमने जिया था जो 
इस कदर गुजर गया 
पास ग़मों को छोड़ गया 
हमने तुमने लाख चाहा 
मिलन के बदले पर जुदाई पाया 
मेरे साँस ले लो 
मुझे तुम अपने 
सांसो का जहर मत दो 
ऐ वक्त 
एक एहसान कर 
खामोश मेरी जुबाँ कर 
अच्छा था तुम सोये थे 
मैं ही न था 
मात्र विवेक से 
आज तूँ है 
पर मैं ही न हूँ 
सब कुछ से 
तेरी जिंदगी 
तुझ पर 
मेरा ही एहसान है 
वर्ना 
जानते हैं सभी 
बेवफाई की सजा 
सिर्फ एक मौत है !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०५ - ०८ - १९८४ 

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