मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

353 .तब तूँ किसी और की हो चुकी थी

३५३ 
तब तूँ किसी और की हो चुकी थी 
बहुत बाद तब जो तुझे देखा था मैंने 
ना जाने तूँ किस हसीन दुनियाँ में खो चुकी थी 
पर तब तेरे उस सुरमयी नैनो की शाम 
' सवेरा ' की जिंदगी को बना रही थी नाकाम 
पर ना जाने तेरी तब क्या चाहत थी 
होंठो पे तेरे फिर भी नाजुक हंसी के फूल थे 
लब मेरे सूखे थे आँखें मेरी भींगी थी 
तुम कुछ इतरा कर लोगों को दिखा रही थी 
मैं तो तेरा कुछ नहीं वो तो तेरी फितरत थी !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' २९ - ०६ - १९८४ कोलकाता 
१२ - ४५ pm 

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