शनिवार, 6 दिसंबर 2014

351 .मैं शून्य हूँ

३५१ 
मैं शून्य हूँ 
गुण अवगुण रूपी अंक 
मेरे नहीं 
मैं तो शून्य था शून्य हूँ 
ये अंक तेरे बिठाये हुए हैं 
मैं शून्य 
जैसे सूना आकाश 
मैं शून्य 
जैसे पृथ्वी का आकर 
निर्विकार निराकार 
निर्गुण निराधार 
मेरा न कोई रूप है 
ना ही कोई आकर 
यहाँ नहीं कोई विकार 
मैं शून्य हूँ 
शून्य ही है मेरा आकार 
शून्य की पहचान में 
समाविष्ट सब मुझ में 
शून्य को पाकर 
स्वामी विवेकानंद हूँ मैं 
परब्रह्म का 
हूँ मैं रूपाकार 
जिन - जिन धर्मों का 
जिन - जिन कर्मो का 
जिस ज्ञान का जिस विज्ञानं का 
इक्षा  हो 
करलो मुझ में साक्षात्कार 
पर लोग अक्सर आपस की प्रीत 
गैरों की बातों में आकर तोड़ देते हैं !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' ३० - ०६ - १९८४ कोलकाता 

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