सोमवार, 17 नवंबर 2014

333 .दर्द में डूबी शाम है मेरी

३३३ 
दर्द में डूबी शाम है मेरी 
गर्द में डूबा नाम 
नाम तेरा ले - ले के हम तो 
प्यार में हुए बदनाम 
मन मंदिर में 
तुझको बिठाकर 
कुचल गए मेरे 
सारे अरमान 
तुम जो न होते 
यार मेरे तो 
अपना होता 
ऊँचा नाम 
वफ़ा करके तुझसे हम 
होते न यूँ बर्बाद सनम 
करके मोहब्बत 
तुझसे हमने 
क्या - क्या न 
जुल्म सहे 
दिल भी टुटा 
आश भी छूटी 
दर्द की ऐसी 
बांध जो टूटी 
बिखर गया तिनका - तिनका 
आदर्शों के मेरे 
जो तूने महल तोड़ी 
दर्द में डूबी शाम है मेरी 
गर्द में डूबा नाम 
नाम तेरा ले - ले के हम तो 
प्यार में हुए बदनाम !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' ३० - ०४ - १९८४ 
कोलकाता २ - १० pm 

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