सोमवार, 6 अक्तूबर 2014

302 . उस दिन तूने

३०२ .

उस दिन तूने 

अपने ही हाथों 

अपना पत्र वापस पाकर 

टुकड़े टुकड़े कर डाला था 

पर ना जाने क्यों ?

उस हर टुकड़े के साथ - साथ 

दिल मेरा हो रहा था चाक - चाक 

हर टुकड़े मे तेरे

वफा के खून थे 

प्यार का स्पंदन था 

कतरा  - कतरा कर 

खून सारा बहा दिया 

नब्ज को काटकर 

धड़कन को मिटा दिया 

उस कोलतार के सड़क ने 

सब टुकड़ों को  

सीने मे अपने लगा 

कालिख मेरे मुंह पे 

मेरे वफा के बदले मुझ पर पोत दिया था |


सुधीर कुमार ' सवेरा ' २९-०६-१९९४ कोलकाता 

 १२-३५ pm 

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