शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

292. तुम्हारी याद मेरी जिन्दगी का हासिल है !



२९२.

तुम्हारी याद मेरी जिन्दगी का हासिल है !
तुम्हारी याद में कायम है जिन्दगी मेरी !!

कि निगाहें आपकी याद आ रही हैं !
मुझे देखा था आपने जिस नजर से !!

जब तलक मिले न थे तुझसे कोई आरजू न थी !
देखा जो तुझे तेरे तलबगार हो गए !!

अब इस फ़िक्र में ही रात दिन कट रहे हैं !
तुझे भूल जाएँ , या खुद को भुला दें !!

चाहकर इस कदर जो भुला दिए तुम !
दिल ही जानता है जी रहे हैं किस दिल से हम !!

ऐसा आसाँ नहीं मोहब्बत करना !
यह काम उनका है जो जिन्दगी बर्बाद करते हैं !!

सुधीर कुमार ' सवेरा ' १९ - ०६ - १९८४ 

कोई टिप्पणी नहीं: