शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

290. चलती हैं आप सीना उभार के


२९०.

चलती हैं आप सीना उभार के 
पैरों में परे को ठोकर मार के 
क्या आप ही एक जवाँ है 
और कोई जवाँ नहीं ?

बाँकी दिल में कोई न अरमान रहे !
या रब इस दिल में वो लाखों बरस रहें !!

भींगे हुए बालों से जो झटका उसने पानी 
झूम कर घटा छाई , टूट के बरसा पानी !!

मुझे तेरी आँखों से सदा सरोकार रहेगा !
जी कर भी दिल तो सदा बीमार रहेगा !!

याद उनकी जो आयी 
बेगैरत से आँखों से आंसू निकल पड़े 
मुद्द्त के बाद गुजरे जो हम उनके गली से !

सितम करने वाले क्या तुमको पता है !
मेरे दिल की दुनियां है वहीँ तूं जहाँ है !!

दिल को चुरा के खाक में मुझको मिला दिया !
जिन्दगी तो चार दिन की थी उसे भी जिन्दा जला दिया !

लोग कहते हैं रात बीत चुकी !
उन्हें समझाओ मैं शराबी नहीं !!

सबको अपनी ही सुनाने की पड़ी है !
मेरी कौन सुनेगा किसको मेरे सुनने की पड़ी है !!

सुधीर कुमार ' सवेरा ' १९ - ०६ - १९८४
८ - २४ am  

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