गुरुवार, 8 अगस्त 2013

285 . तेरे बीमार विचारों को


२८५.
तेरे बीमार विचारों को 
तेरे कमजोर निगाहों को 
तेरे स्व के अहंकार को तेरे शामों की कालिमा को 
गहराती शाम 
अपने दामन में समेट लेती है 
सुबह का सूरज 
तेरे बदन पे दाग लिए आता है 
तेरे मानसिकता से 
ओझल होती 
मानवता की बाती 
तेरे साँस के बोझ से 
दबता तेरा परिवेश 
मैं अपनी दानशीलता 
समर्पित करता हूँ तुझको !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' १९ - ०६ - १९८४ 
१२ - १५ pm  

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