गुरुवार, 8 अगस्त 2013

284 . मोहब्बत की तारीख को भूलता नहीं दीवाना !


२८४.

मोहब्बत की तारीख को भूलता नहीं दीवाना !
आग लगाने से भला कब चुकता है जमाना !!

महबूबा बनी शाकी तो शराब ऐसी पी !
होश जब आया तो गम न पाया पी !!

हाथ में डिग्री थी घर में बीबी थी !
जेब में फूटी कौड़ी भी नहीं नसीब इतनी खोटी थी !!

दुत्कार और फटकार अल्ला से मिला है प्यार में !
गरीब को कोई गिला नहीं , ना ही जीत में ना ही हार में !

कांटे बिछे हों राहों में , आंसू बहे जीवन भर !
तुम भी कांटे चुभोते रहो उफ़ न करेंगे जन्म भर !!

सुधीर कुमार ' सवेरा '  १९ - ०६ - १९८४ 
१२ - ०७ pm 

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