गुरुवार, 8 अगस्त 2013

280 . हर याद तुम्हारी


२८०.

हर याद तुम्हारी 
बहुत बेरहम है 
हर मुलाकात तुम्हारी 
बेहद जालिम है 
कितने तारीखों को 
हमने अपने तारीख से 
जुदा कर डाला 
एक तेरी ये नामुराद याद 
मेरी जान पे आ बनी है !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' ०३ - ०५ - १९८४ 
१ - २९ pm 

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