रविवार, 23 जून 2013

261 .अहं की तंग घाटी में


२ ६ १ .

अहं की तंग घाटी में 
हर नया पौधा 
जन्म लेता 
पर 
फूल नहीं देता 
नदी से निकली 
नहरें नहीं 
नाले का पानी बहता 
जो गुजरा 
सो गुजरा 
समय रहते चेतो 
अब भी वक्त है  
अपने आप को रोको 
एक - एक कतरा 
हर क्षण को 
सम्पूर्णता से भोगो !

सुधीर कुमार ' सवेरा '   १ ९ - ० ४ - १ ९ ८ ४ 
३ - ५ ० pm 

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