रविवार, 9 जून 2013

257 . अर्ध खिली चाँदनी


२ ५ ७ .

अर्ध खिली चाँदनी 
अगम्य अपार 
बोध गम्य 
इन्द्रियों के उस पार 
व्याधि रहित सार गम्य 
चाँद के उस पार 
खुला - खुला 
गोरा आसमान 
दूर से गूंज आयी 
स्वरों की मधुर लहरी 
शायद झील के उस पार 
तर्क हीन 
वृथा का दम्भ 
सारगर्भित मन का
आकुल आनन् 
और सभी 
दरवाजे बंद 
अन्जान सुनसान 
रिक्त राहें 
चाँद कब खिला 
पता नहीं 
शायद दिवास्वप्न था 
इक्षायें ही तो नहीं मरती 
जाग कभी पाते नहीं 
रह जाती है वही पूर्व स्थिति !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' १ ९ - ० ४ - १ ९ ८ ४ 
२ - ३ ८ pm   

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