मंगलवार, 28 मई 2013

255 .सघन चमन



 २५५ .

सघन चमन 
मधुर - मधुर पवन 
मंद - मंद लय से 
मृद -मृद थिरकन 
छायी हुई है हर ओर 
क्या वन क्या उपवन 
क्या अर्वाचीन क्या प्राचीन 
रूप , रस , गंध के उस पार 
अर्थहीन रागहीन हतभाग
अमरता को प्राप्त करता 
कह कहों से भरा हर मुग्ध क्षण !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' १ ९ - ४ - १ ९ ८ ४ 
२ - २ ० pm  

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