गुरुवार, 9 मई 2013

251 . सब उजड़ा उखड़ा हुआ


२ ५ १ .

सब उजड़ा उखड़ा हुआ 
केंद्र भी संभाल नहीं पता 
संसार में 
मात्र उन्मुक्त है अराजकता 
चतुर्दिश रक्तपात 
द्वेष का ज्वार फुट पड़ा 
इंसानियत का रिवाज ही उठ गया 
भलों का अच्छाई से रिश्ता ही टूट गया 
बुरों में व्याप्त है 
आवेश पूर्ण तीव्रता 
सबकुछ बिखरा पड़ा है 
हमारे ही सामने 
शराफत का ताला 
हमारे ही मुंह पर है जड़ा हुआ !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' १ ८ - ० ४ - १ ९ ८ ४  
१ - ० ० pm  

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