शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

170 . है उपासना ऐसी

170 . 

है उपासना ऐसी 
सदा लगता है 
हो अपने पास बैठी 
सदा साथ रहता है 
मन में तेरे साँसों का एहसास 
लिखी है दास्ताँ दिल ने 
सुनाई जा नहीं सकती 
दर्द के दास्ताँ से 
याद भुलाई जा नहीं सकती 
बहुत चाहा सुनाना 
दास्ताने दर्दे दिल महफ़िल में 
मगर दिल पर गया है 
आज बेतहासा मुश्किल में 
जो एहसास दिल ने किया 
जुबाँ बयाँ कर नहीं सका 
जो बयाँ कर सकता 
उसे एहसास ही नहीं हुआ 
दिया है जिसने जानो जिस्म 
हँस कर इस ज़माने को 
पीया गम जिन्दगी भर ही 
ज़माने को हँसाने को 
कहानी प्यार की उसकी 
आसानी से भुलाई जा नहीं सकती 
कलेजा चीर कर भी रख दूँ 
तो भी जख्मे जिगर 
दिखाई जा नहीं सकती 
प्यार ने उठाई है वो मुसीबत 
जो बिसराई जा नहीं सकती 
दे मृदु प्यार का आश्रय 
थकी हारी जवानी को 
बनाया गीत का नगमा 
हारती हर कहानी को 
कहानी त्याग की तेरी भी 
झुठाई जा नहीं सकती 
हुआ पुरुषार्थ बुढा तो 
बनी उसका सहारा तुम 
न कर पाओगी बुरे दिनों में 
मुझसे कभी किनारा तुम 
ज़माने में मिसाल तेरी 
भुलाई जा नहीं सकती 
वही ममता मयी नारी 
अनूठे प्रेम की प्रतिमा 
दहकते नरक को 
जन्नत बनाने की सहज गरिमा 
उन एहसानों की दौलत 
कभी भी लुटाई जा नहीं सकती 
तूने मेरे सब्र का 
इंतकाल कर दिया है 
पर मैंने अपने जीवन को 
खुद ही नरक बना दिया है 
फिर भी तेरा असीम प्यार 
दिल से मिटाई जा नहीं सकती 
समझ में आता नहीं 
तेरे उपकारों का बदला 
कैसे चुकाना है 
तेरे हर चोट को 
दिल में संजो कर रखना है 
सुधा को धार तो 
विष की पिलाई जा नहीं सकती 
अगर मैं ही नहीं तेरा सम्मान कर पाए 
अगर जो कुछ बलिदान न कर पाए 
बिना इसके प्यार के 
अमर बनाई जा नहीं सकती !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 22-06-1982
चित्र गूगल के सौजन्य से  

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