रविवार, 23 सितंबर 2012

149 . ये दुनिया है कितनी हँसी

149 . 

ये दुनिया है कितनी हँसी 
जिधर देखो उधर है मस्ती 
शामें रंगीन सुबह बहार 
दोपहर हँसी रातें गुलजार 
गुलाब खिली बही बसंती बयार 
ये दुनिया है एक रंगीन बाजार 
मिला दोस्तों का प्यार 
मैं हूँ सबका यार 
न कही जो तुने बात 
मैं कहता हूँ सबसे आज 
गम लाख घिर जाये 
हो जाये बादलों की रात 
मर जाये माँ की ममता 
छुप जाये पिता का प्यार 
न होगा उतना दुःख 
मर जायें गर हम ही आज 
पर छीन जाये जो किसी का प्यार 
जो रहा हो सच्चा यार 
लगा दिया हो जिसमे ज़माने ने आग 
झुलस गयी हों जिसमे कलियाँ हजार 
वो बहार गर मिल भी जाये तो क्या है 
जलन की मारी ये दुनिया 
इर्ष्या से भरी ये दुनिया 
स्वार्थ में पलती ये दुनिया 
लोभ की मारी ये दुनिया 
ऊँच नीच की मारी ये दुनिया 
गरीबी अमीरी में बंटी ये दुनिया 
जात पात से घिरी ये दुनिया 
ये दुनिया गर मिल भी जाए तो क्या है 
दो दिलों को जो तोड़े ये दुनिया 
मुझको मुझसे दूर करे 
हमको तुम से दूर करे 
दिल को तोड़े जहर भी न दे 
हम को हम से अलग करे 
हम को उनसे अलग करे 
हम क्यों जियें हम क्यों न मरें 
ये शरीर बिना प्राण कैसे रहें 
ढाओ जुल्म हम हजार सहें 
गा - गा के मर जाने दो 
कैसे भला हम चुप रहें 
कैसे अब हम जिन्दा रहें 
ये दुनिया गर मिल भी जाए तो क्या है
जब वो ही नहीं तो हम क्या हैं 
जान हो ही नहीं तो जिस्म क्या है 
जब रात नहीं तो ख्वाब क्या है 
जब लौ ही नहीं तो प्रकाश क्या है 
जब ' उषा ' नहीं तो ' सवेरा ' क्या है 
जब तुम ही नहीं तो मेरा क्या है 
ऐसी गम की दुनिया मिल भी जाये तो क्या है 
जब तुम ही नहीं तो ये दुनिया क्या है 
गाने की भी जब छुट नहीं 
रोने की भी इजाज़त है नहीं 
मौत भी अपने पास नहीं 
कहो अब मैं क्या करूँ 
जिन्दगी है ये क्षण भर की 
पर बगैर तेरे ये क्षण भी 
लग रहा पहाड़ है 
गम से बोझिल है ये दिल 
क्यों न खुद ही गम पिऊँ 
क्यों दुनिया को गमगीन करूँ !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 07-09-1980
चित्र गूगल के सौजन्य से  

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