बुधवार, 22 अगस्त 2012

128 . मेरा मन मंदिर सा पावन

128 .

मेरा मन मंदिर सा पावन 
हुआ जिसमे प्रेम का आवाहन 
वर्ष दो वर्ष बीते सपनों को संजोये 
पाकर सबकुछ ही इसी अन्तराल में खोये
इस जीवन का मोल अब मैंने जाना 
मोल मिला नहीं बिक गया जमाना 
जीवन के गंगनागन में ही जब उसके 
दीप यादों के भी जला करेंगे मेरे 
स्वार्थ में सबकुछ पाकर भी वो अपने 
तरपती रहेंगी सदा निःस्वार्थ प्यार को मेरे 
खोया है नहीं कुछ खोकर कर भी उसने 
खोया है क्षणभर में अनमोल प्यार मैंने 
गर वो धोखा था तो भी हसीन 
खुदा करे ऐसा धोखा और दे मुझे !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 25-12-1983 
चित्र गूगल के सौजन्य से 

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