गुरुवार, 2 अगस्त 2012

111 . तन से मुझे जुदा कर दी

111 .

तन से मुझे जुदा कर दी
तो कोई बात नहीं
पर औरों को मन में यूँ न बिठाया करो
हर एहसास मेरी भूलकर भी 
मुझको न भुला पाओ
तो कोई बात नहीं
मेरे ख्यालों में यूँ न आया करो
दिल चाहे जो कभी 
भूले भटके भी
मेरे पास आने को कभी
गैर मुझको समझकर
पाओं को न यूँ रोका करो
जिन्दगी में जो कभी
' सुधाकर ' को गोद में
खेलाते  हुए
गर मेरे पास आना चाहो
बेझिझक पास मेरे चली आना
हर पल तेरे लिए दर मेरा
मेरे इंतकाल तक रहेगा खुला
वक्त गर कभी ऐसा आये
तो क़दमों को न कभी यूँ रोका करना
मुझको भुला कर भी
जो याद मेरी आये
सपनो में आकर मेरे
न मुझको यूँ रुलाया करो
मुझको न तुम यूँ रुलाया करो
सपनो में आकर न यूँ
आंसू मेरे पोंछ जाया करो
गुजरते वक्त के साथ
न तुम यूँ याद आया करो
सितम चाहे तुम जो भी ढाओ
सपनो में आकर मेरे तुम
न यूँ आंसू मेरे पोंछ जाया करो
लिपट कर गैरों के बाहों में
सदा तुम यूँ ही मुस्कुराया करो
कसम तुझे है तेरी ही
खयालो में न तुम यूँ आया करो
मेरे हर आह पे
महल तुम अपना उठाओ
कहर जितना भी चाहो
मुझ पर ढाया करो
पर यूँ गैरों के निगाहों से
मुझको न यूँ देखा करो
तरस मुझ पर जो भूले से भी तुझको आये
मेरे उजड़े गुलिस्तान को देख
यूँ न तरस खाया करो 

निभाने  को कसम कोई
एक भी खाया करो
तोड़ने को न यूँ हजार कसमें खाया करो
बंधन तुझे कुछ भी न था
बंधन तुझे अब कोई नहीं
झूठी बंधन का डर न यूँ दिखाया करो
हंस के ही कह दो
वो प्यार नहीं धोखा था
कहानी को हकीकत बना के
सच्चाई से न यूँ मुंह मोड़ा करो
वो प्यार नहीं तो क्या था
जब मेरे गले में तेरे बाहों का घेड़ा था
वक्त बदल गया तो तो कोई बात नहीं
हमसफ़र बिछर गए तो कोई बात नहीं
मैं वहीँ ठहर गया तो कोई बात नहीं
मुझे तुम से अब कोई चाह नहीं
ख़बरें झूठी तो ऐसी उड़ाया न करो
चाहे लाख सितम कर लो
यादों के तीर तो 
न यूँ चुभाय करो
कहना न कभी तुझे आवाज न दिया
दिल की हर धड़कन ने
सांसों की हर लय ने
नाम बस तेरा ही पुकारा है
सुनकर दिल के मेरे हर आवाज को
दर्दों के साज यूँ न छेड़ा करो
साँस जब घुटने लगती है
जिन्दगी से भी नफरत होने लगती है
जुदाई का गम जब बर्दास्त होता नहीं
सहनशीलता का हर सीमा जब टूटने लगती है
एक झूठी आश देकर
न यूँ बेमौत मारा करो
अपना बनाकर
जिन्दगी उजाड़ दी मेरी
गैर बनाकर भी एक तिनके का सहारा दे दो
पल दो पल मिलकर
सपनो का सहारा दे दो
न आना हो न आओ जिन्दगी में मेरे
सड़कों पर गुजरते वक्त
मुंह इस कदर भी न यूँ मोड़ा करो
दे तो मैं कुछ सकता नहीं
ले मैं भला क्या पाऊंगा
अविश्वास करके भी
दिल अपना थाम कर आया करो
ख़ुशी नहीं तो दुःख ही सही
कभी तो कुछ आकर दे जाया करो
कदमबोशी की तमन्ना है दिल को
कदम न सही
चरणरज ही दे जाया करो
अभी दर्द बहुत अधुरा है मरने के लिए
गिन के जख्मो को मेरे
न यूँ रुलाया करो
मेरे जख्मो को न सहला पाओ
तो कोई बात नहीं
पर गैरों के दिल को न यूँ सहलाया करो
चूम कर गैरों के ओठों को
मेरे प्यार को न यूँ जुठाया करो
दिल पे धड़कन गैरों के सुनकर
मेरे एहसास को न यूँ भुलाया करो !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' २५-०१-१९८४

चित्र गूगल के सौजन्य से
 

कोई टिप्पणी नहीं: