शनिवार, 21 जुलाई 2012

93 . फूलों की वादियों में रहते हो

93.

फूलों की वादियों में रहते हो 
खुद पे मचलते और इतराते हो 
मेरे काँटों से भरे वादी में 
झाँक कर जरा तो देखो 
इल्जाम सारा मेरे ही सर दो 
पर गली से मेरे 
एक बार भी गुजर कर देखो 
तेरे बागों के फूल 
जब लगे झरने 
टूट - टूट कर जब लगे बिखरने 
गुजर जाना एक बार 
मेरे भी अंजुमन से 
खार मेरे बाग़ के 
जो सुख भी जायेंगे 
तो भी दामन तेरा थाम लेंगे 
यार मेरे गम न करना 
क्या हुआ जो तुमने 
व्यापार किया मुझसे 
भूल न पाउँगा मैंने प्यार किया तुमसे 
दिल को थोड़ा कचोट भी न होगा तेरे 
पग - पग पर तुमने बदनाम किया है मुझे 
जिन गलियों में मेरा नाम था 
सरे आम वहाँ गुमनाम किया है मुझे 
जो प्यार का नाटक 
मुझसे तूँ न करती 
तो तेरा क्या जाता 
दिल बहलाने को तुम्हें 
तब भी बहुत मिल जाते 
जितनी की जीवन न दी तुमने 
उतने मौत की दे दी लम्हें 
तेरा प्यार तो तिजारत था 
मेरे प्यार को क्यों बदनाम किया 
एहसास गर होगा सच्चा मेरे प्यार का 
दूर न तूँ रह पायेगी 
मेरी पूजा एक न एक दिन सफल होगी 
जब पास हमारे आ जायेगी 
केवल सुनता ही रहा हूँ मैं 
लोगों को कहते हुए 
देखें क्या यह सच भी होता है 
जब प्यार पुकारता है 
प्रीतम से मिलने प्यार दौड़ा चला आता है !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 03-02-1984   12.00 pm 

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