शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

91 .हल्की सी भीड़ में भी

91.

हल्की सी भीड़ में भी 
वो नहीं मिलते 
ख्यालों के चट्टान से 
हम अपना ही सर फोड़ते 
उनके बून्द दरश के 
मात्र हम एक अभिलाषी 
बस बाट एक हम उनके ही जोहते 
खोकर भी सबकुछ 
पता नहीं क्यों हम उनको नहीं भूलते 
सामने रहकर भी 
दृश्य सारा छुप जाता है 
बस एक परिचित आकृति ही 
हर पल हम ढूंढते 
और कौन , बस एक जग में 
जिसको देकर सर्वश्व 
एक रेत कण भी न पा सका 
समुद्र में गोता लगाकर 
एक सीप भी खाली ही पाया 
उन्होंने पूर्ण रूप से मुझको छोड़ा 
जानकर यह सब कुछ 
यादें क्यों नहीं मुझे छोड़ती 
वे रूठ गये 
हम खुद से टूट गये  
आँखें थक गयी 
बाट सुनी - सुनी देखते - देखते !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  11-02-1984

कोई टिप्पणी नहीं: