मंगलवार, 17 जुलाई 2012

86.हे सर्वेश्वर सर्वव्यापी सर्वज्ञ अन्तर्यामी

86. 

हे सर्वेश्वर सर्वव्यापी सर्वज्ञ अन्तर्यामी 
भेद मिटा अन्धकार भगा हे मेरे स्वामी 
एक झलक जो उनका मिल गया है 
प्यास और भी दिल का बढ़ गया है 
एक पल को ही तो थे देखे 
पर याद सारी कहानी आ गयी 
खुशबु जानी पहचानी लगी 
हवा जो तेरे बालों से टकराकर 
मेरे नाकों में समा गयी 
बस याद पुरानी घड़ी आ गयी 
रचा बसा मेरे मन का मूरत 
एक बार फिर दरस दिखा गयी 
एक नज़र मुझ पर डालना भी 
नागवार उनको गुजरा 
हर नज़र जो उनकी मुझ में समा गयी 
आकर दो बात कर लेना भी 
न उनको भाया 
बातों की उनकी दरिया जो 
मुझ में समा गया 
आकर मिलना न उनको मन भाया 
उनके हर अंगों का स्पर्श ही जब मुझमे समा गया !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 03-01-1984 समस्तीपुर 

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