सोमवार, 16 जुलाई 2012

85 . तुम क्यों इस कदर आये

85.

तुम क्यों इस कदर आये
जिन्दगी में मेरे 
क्यों समा गये 
इस तरह दिल में मेरे 
थक गयी हैं निगाहें 
राह तेरी देखते - देखते 
तेरे मिलन के हर पल का एहसास 
दे जाता है एक अनहोनी विश्वास 
तेरे रुसवाई से 
दिल का जख्म बहुत हरा हो गया है 
जो न आते तुम बहार बनके 
ये विरानियाँ न होती 
पतझड़ न होते 
जिन्दगी के बाग़ में मेरे 
बहुत तन्हा हो गयी है जिन्दगी 
तेरे जाने के बाद 
हर पल रुला जाता है 
मुझे मेरे अकेलेपन का एहसास 
तेरा प्यार जितना ही अमृत था 
तुझसे जुदा होने के बाद 
कहीं उस से ज्यादा जहर पी है 
हर लम्हा तेरे आने के आहट से 
चौंक उठता है  
तुझे क्या खोया 
जिन्दगी की सबसे बड़ी 
दौलत खो दी 
जिन्दगी का कह - कहा खो दिया  
अधरों के मुस्कान खो गये !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 17-02-1984 
समस्तीपुर 11-50 am  

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