सोमवार, 16 जुलाई 2012

84 .कहाँ था मैं कहाँ तेरा बसेरा

 


























84.

कहाँ था मैं कहाँ तेरा बसेरा
भूल गया मैं , मैं हूँ ' सवेरा '
तुझको जो जाना तुझको जो समझा 
हाँ वो हूँ मैं , वो हूँ मैं 
जिसकी दुनिया में 
कर दिया तुने अँधेरा 
हाँ वो हूँ मैं 
मैं हूँ वो ' सवेरा ' 
बहला के रुला के अपना बना के 
कर दिया जिसको तुने किनारा 
हाँ वो हूँ मैं वही ' सवेरा '
खाकर सारे कसमे वादे 
तोड़ दिये तुने सपने सारे 
आवारा बादल सा बरसा जो तुझपे 
सबसे प्यारा था जो तुम्हारा 
वही हूँ मैं तुम्हारा ' सवेरा '
नादान बनके अनजान बनके 
जिसको दिया तुने ठुकरा 
वही हूँ मैं तुम्हारा ' सवेरा '
रहो खुशहाल तुम 
सदा मुस्कुराओ तुम 
तेरी ही ख़ुशी में 
मेरी हर ख़ुशी है 
तुझको हँसा कर  
जो न खुद को रुला पाया 
तेरे मुस्कुराहट पे 
जो न मुस्कुरा पाया 
जाउँगा फिर मैं कहाँ 
मत रो कभी मेरी जाँ 
आँखों में जो तेरे 
कभी आँसू भी आये 
निकलने मत देना उसको मेरी जाँ 
ऐसा ही दिन हरदम रहने देना 
मैं रोता रहूँ तूँ हँसते रहना 
गम को गले लगाता रहूँगा 
तेरे ख्यालों में हरदम रोता रहूँगा 
होना ना कभी तूँ उदास मेरी जाँ 
मर ही जाऊं प्यार में तेरे 
या हो जाऊं पागल यार मेरे 
होना ना कभी उदास मेरी जाँ 
रखना सदा ख्याल तूँ अपनी जाँ 
इस नाचीज को तुम भुला ही देना 
मेरी यादों को सदा के लिए मिटा ही देना 
रखना ना मेरे लिए कोई बात मेरी जाँ 
सपनों के घड़ोंदे को जो मुझको मिटाकर 
अरमानों की मेरी होली जलाकर 
खुद को सच्चा मुझको झूठा बनाकर 
हुये न हों जो पुरे तेरे दिल के अरमान 
आ जा जल्दी से आकर 
मुझको कुछ ठोकर लगाकर 
कर ले पुरे बाँकी बचे दिल के अरमान 
जाने कब मुक्ति मिलेगी 
तेरे ख्यालों से पीछा छूटेगा   
आएगा दिन कब वो मेरे यार ?
होगी कब आँखें हमारी चार 
फूटेगा कब तेरा ये गुबार 
समझोगी कब तूँ ' सवेरा ' को ' सवेरा '
उस दिन का मुझको है इन्तजार 
मत हो मेरी जाँ उदास !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  07-12-1983     समस्तीपुर  

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