सोमवार, 30 जुलाई 2012

104 .कहती है तुमसे

104 . 

कहती है तुमसे 
ये हरी - हरी वादियाँ 
गाती हैं एक सुर में 
ये कल - कल बहती नदियाँ 
आ s s आ s s जरा सा पास आ 
नीले नील गगन पे 
है बादलों की छटा
बादलों की ओट से 
झाँकते हुए चंदा की तरह तूँ आ 
छा गयी है प्यार भरी 
सावन की ये घटा 
बरस पड़े पल भर में ही 
गर जो तूँ मेरे करीब आ 
आ s s आ s s जरा सा पास आ 
खिल रही है कली - कली 
प्यार के गीत गा रही गली - गली 
मिल के बैठें हम तुम 
कह रही है ये रुत 
फिज़ा भी महक रही 
प्यार भरी चाँदनी 
चारों ओर छिटक रही 
हवा भी ये कह रही 
आ s s आ s s जरा सा पास आ 
फूलों में कसक उठी 
भौरे भी बहक रहे 
तितलियाँ भी मस्त हैं 
खिज़ा में गुल खिल रहे 
दिल में ये कसक उठी 
प्यार में हम मिले 
दूर - दूर हैं क्यों खड़े 
तेरे रहते हुए भला 
हम क्यों भटक रहे 
नज़ारे भी ये कह रहे 
आ s s आ s s जरा सा पास आ 
नयनों में तेरे अक्स हैं 
दिल में तेरी चाह है 
जुबाँ पर भी तेरा नाम है 
मन में मिलन की चाह है 
तन भी हैं कह रहे 
आ s s आ s s जरा सा पास आ !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 10-06-1980     

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