बुधवार, 6 जून 2012

72.पुराने नजरों से

72 .

पुराने नजरों से 
निश्छल कामनाओं से 
वही शाश्वत 
नूतन - पुरातन 
प्यार से बोझिल पलकों से 
कामनाहीन होकर 
एक इंसान समझकर 
हर अहम् से अलग हंटकर 
वंशागत चादरों को परे कर 
वही पहली 
और आखरी 
नजरों से 
एकबार फिर मुझे देखो 
मैं तुम्हारा ही हूँ 
तेरा ही सहारा हूँ 
बेहद प्यार 
जो  दे सकता है 
स्नेहसिक्त रसयुक्त 
ओठों के ललाम 
प्यार बन  
जो हंसा सकता है 
प्यार का अमृत 
जिसने बांटा था 
वो मैं ही हूँ 
एक बार फिर 
दिल तरप रहा है 
प्यार उड़ेलने को 
दिल मचल रहा है 
साँसों की गर्माहट देने को 
हाथ बेताब हैं 
तेरे अश्कों से 
अपना दामन भरने को 
तेरे शापित अँधेरे रास्ते में 
जीवनदात्री रौशनी 
बिखेरने को 
दिल चाह रहा है 
आना ही है तुझको 
फिर चले आओ 
बिलकुल शांत है 
तेरा ये अपना घर 
भटकना था शायद तुमको 
समाज के अँधेरे रास्तों पर 
उजाला लिए मैं खड़ा हूँ 
तेरे ही घर के दरवाजे पर 
रास्ता तुझे अपना 
किसी से पूछना नहीं है 
तुम्हे तो पता है 
मेरा अकेलापन 
मुझे कितना व्यथित करता है 
आना ही है तुमको 
अब न विलम्ब करो 
बस चले आओ 
एक उगने वाले सूरज से 
एक डूबने वाले सूरज से 
नित्य मन भर जाता है 
एक अनकही पीड़ा से 
मेरे तरफ देखो 
आँखों में आँखे डाले 
साहस नहीं तुम्हे 
फिर भी क्या 
देखो मेरे तरफ 
मैं वही  हूँ 
कह रही है 
आँखों को मेरी 
निर्दोष रौशनी 
कहीं कोई दोष नहीं 
भले ही 
बहुत सी चीजें 
गुजर गई हैं 
फिर भी कहीं कोई 
दोष नहीं
देखो ! मुझे 
मैं हूँ वही 
तेरा पहला 
और अंतिम 
कभी न ख़त्म होने वाला प्यार 
मैं सिर्फ तुम्हारा ही हूँ !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  29-03-1984 
कोलकाता - 1-50 pm 

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