गुरुवार, 15 मार्च 2012

50 . दरिंदगी की छाँव में


५०.
दरिंदगी की छाँव में 
इंसानियत के नाम से 
मानवता है कांप रहा 
हाय - हाय के आवाज से 
लूट खसोट के व्यापार से 
अफसरों के भ्रष्टाचार से 
धोखे और विश्वासघात के व्यवहार से 
मानवता है काँप रहा 
तोड़ने के लिए ही कसमे खाना 
जहर देने के लिए प्यार करना 
निराश करने के लिए आशा बंधाना 
ठोकर मारने के लिए अपना बनाना 
मानव के इस विचार से 
मानवता है काँप रहा !

सुधीर कुमार ' सवेरा '  २४-०१-१९८४.

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