बुधवार, 14 मार्च 2012

49 . सच्चाई - सच्चाई और सच्चाई


४९.
सच्चाई - सच्चाई और सच्चाई
क्यों चिल्लाते हो सच्चाई और सच्चाई 
क्यों देते हो उसकी दुहाई 
कोसों कोस चलकर 
फासला बहुत तय किया 
कोसों और चलना है 
इतना चलकर भी वहीं पहुंचे हैं 
चलकर जहाँ से पहुंचे थे यहाँ तक
चलना फिर वहीं से है 
चलकर जहाँ से पंहुचे थे यहाँ तक  
घिसट - घिसट कर चलते है 
कभी लम्बी दौड़ लगाते हैं 
छलांगे लगाने से भी नहीं चुकते 
मौका जब भी मिलता है 
कुछ न कुछ लोग हरपते हैं 
पीछे मुड़ कर देखते हैं 
चले थे जहाँ से 
फिर वहीं आ पहुंचे हैं 
हिरनी , खरगोश और कछुए 
हर की दौड़  से दौड़ते  हैं 
फिर भी बहुत दूर हैं !

सुधीर कुमार ' सवेरा ' 09-०१- १९८४   

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