शनिवार, 28 जनवरी 2012

10. ऐ जीवन तूं पतझर


10-

ऐ जीवन तूं पतझर
या तेरी जमीं ही है बंजर ?
  चलते हैं जिसपर केवल  खंजर 
ओढ़े हुई है फटी चादर 
मज़बूरी ही है क्या तेरा नाम ?
  क्या केवल तूं है विवशता ?
अब भी तूं अपने को जान 
क्या है तेरी आवश्यकता ?
ऐ जीवन तूं पतझर 
तेरी कीमत है अनमोल 
अब भी अपने को पहचान 
क्यों देती है विष घोल ?
ऐ जीवन तूं पतझर  
  किधर है ख्याल तेरा तूं कंहाँ  है ?
सुन ' सवेरा ' से 
यह इबादत का बंया  है
कर ले इन्साफ तूं अपने से 
हर जगह तेरा ही तो महकमा है 
गूंज उठेगी कहकहा 
हर और एक ही वाक्या  है
ऐ जीवन तूं पतझर ! 

सुधीर कुमार  ' सवेरा '            ११-०१ - १९८० 

कोई टिप्पणी नहीं: